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एक पेड़ ऐसा जिसकी पत्तियां खाने से होती है सुरीली आवाज

  • उदय सिंह यादव, प्रधान संपादक : INA NEWS TV

अकबर के दरबार में गाते थे, तो मोमबत्तियाँ अपने आप जल उठती थीं 

यह सुनकर आप को बेहद अचरज होगा। लेकिन यह कोई औषधि नहीं बल्कि एक बेहद पुरानी मान्यता चली आ रही है। पीढ़ियों से इसी मान्यता के चलते संगीत साधक और संगीत प्रेमी बरसों बरस से इस अद्भुत, जादुई पेड़ की पत्तियों को खाकर आपनी आवाज़ में सुर और मिठास घोलते चले आ रहें हैं। 

इस अद्भुत पेड़ में यूं ही संगीत का जादुई असर नज़र नहीं आता। बल्कि इसके पीछे एक बहुत बड़ा राज छिपा हुआ है। असल में हिंदुस्तान के संगीत सम्राट एवं अकबर के दरबार में नौरत्नों में शुमार महान शास्त्रीय संगीत कार मियां तानसेन की कब्र के पास लगा इमली का पेड़ है। 

आज भी संगीत सीखने वाले लोग उनके क़ब्र पर जाते हैं। उस पेड़ के पत्ते जरूर खाते हैं। साथ ही प्रसाद के तौर पर अपने साथ लेकर भी जाते हैं। इस मान्यता के चलते कि पत्ते खाने से लोगों की आवाज़ सुरीली हो जाती है। 

संगीत सम्राट मियां तानसेन की कब्र पर है यह पेड़

संगीत सम्राट मियां तानसेन की कब्र पर है यह पेड़ सभी संगीतकारों में सबसे महान, तानसेन की मृत्यु 1589 में हुई थी। तानसेन को ग्वालियर में उनके सूफी शेख मुहम्मद गौस के मकबरे के परिसर में दफनाया गया है । जहां उन्हीं के करीब अपनी घनी छाया के साथ साथ सुर लहरियां बिखराता इमली का पेड़ संगीत प्रेमियों पर जमकर अपना आशीर्वाद बरसा रहा है। कहावत यह भी है कि इसी इमली के पेड़ के नीचे बैठकर तानसेन रोजाना रियाज किया करते थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत के जाने-माने कलाकार पंडित जसराज जब यहां आए तो इस पेड़ की पत्तियों को खाने से खुद को रोक नहीं पाए। जब वो जाने लगे तो कुछ पत्तियां अपने साथ भी ले गए।

तानसेन की जीवनी : Tansen Biography in Hindi

तानसेन को सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे और इसके साथ ही साथ वह भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे महान व्यक्तियों में से एक हैं| उनका जन्म ग्वालियर में एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिताका नाम मुकुंद मिश्रा था जो कि एक प्रसिद्ध कवि थे।

तानसेन का जन्म सतना के पास एक गाँव में एक हिंदू परिवार में 1506 में हुआ था। जब उनका जन्म हुआ, तो उनके परिवार ने उनका नाम रामतनु रखा, और उन्हें तन्नु कहा जाने लगा। 5 वर्ष की आयु तक, तानसेन हर औसत दर्जे के बच्चे की तरह थे लेकिन उनके गुरु हरिदास जो कि उस समय के एक प्रसिद्ध गायक थे उन्होंने तानसेन की बहुमुखी प्रतिभा की पहचान की|

तानसेन ने सबसे पहले मेवा बांधवगढ़ के राजा रामचंद्र को अपनी प्रतिभा दिखाई। बाद में, उन्हें मुगल सम्राट अकबर के सामने अपनी बहुमुखी प्रतिभा और कौशल का प्रदर्शन करने का अवसर मिला। तानसेन केवल एक गायक ही नहीं, बल्कि एक प्रसिद्ध कवि भी थे, जिन्होंने कई दोहे रचे थे।

जब तानसेन अकबर के दरबार में थे, तो उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित नए रागों की रचना की| अपनी रचना शुरू की। उन्हें हिंदुस्तानी संगीत का जनक माना जाता है। सम्राट अकबर ने उन्हें मियां की उपाधि दी थी अतः उन्हें मियां तानसेन भी कहा जाता था।

तानसेन लंबे समय तक स्वामी हरिदास के शिष्य रहे, जो वृंदावन के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे और राजा मान सिंह तोमर के ग्वालियर दरबार का भी हिस्सा थे। मुहम्मद गौस उनके आध्यात्मिक गुरु बने और उन्हें इस्लाम से परिचित कराया।

अकबर ने जब उनके बारे में सुना तो अपने एक दूत को राजा और तानसेन के पास भेजा | तानसेन अकबर के दरबार में आने को राजी हो गए और 1562 में अकबर के दरबार में आए | जबकि कुछ लोगों का मानना है कि अकबर की बेटी तानसेन से मंत्रमुग्ध थी जिसके कारण तानसेन अकबर के दरबार में आए थे| ऐसा माना जाता है कि बाद में तानसेन ने इस्लाम भी कुबूल कर लिया था |

तिहासकारों ने यहां बताया है कि तानसेन को अकबर के दरबार में अपने पहले प्रदर्शन में एक लाख सोने के सिक्के दिए गए थे।वास्तव में उनकी आवाज इतनी मधुर थी कि अक्सर कहा जाता है कि जब तानसेन गाते थे तो चमत्कार होता था |

उदाहरण के लिए, तानसेन राग मेघ मल्हार द्वारा बारिश करा देते थे और राग दीपक के साथ आग लगा सकता है। उनके संगीत की ऐसी शक्ति थी कि जब वे अकबर के दरबार में गाते थे, तो मोमबत्तियाँ अपने आप जल उठती थीं

सभी संगीतकारों में सबसे महान, तानसेन की मृत्यु 1589 में हुई थी| तानसेन को ग्वालियर में उनके सूफी गुरु शेख मुहम्मद गौस के मकबरे के परिसर में दफनाया गया है।

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