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नवरात्र का पहला दिन, करें माता शैलपुत्री की पूजा : INA NEWS TV

उदय सिंह यादव, प्रधान संपादक 

DESK : आज से नवरात्रि के पावन पर्व की शुरुआत हो रही है। नवरात्रि का पर्व 9 दिनों तक बड़े ही धूम- धाम से मनाय जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा- अर्चना की जाती है। 

मां शैलपुत्री सौभाग्य की देवी हैं। उनकी पूजा से सभी सुख प्राप्त होते हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ, इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। मां को वृषारूढ़ा, उमा नाम से भी जाना जाता है। उपनिषदों में मां को हेमवती भी कहा गया है।

आज से नवरात्र आरम्भ हो गया है और मातारानी की स्थापना घर - घर में की जा चुकी है. आज से दिनों तक हर घर में मातारानी की पूजा अर्चना की जाएगी और जगह-जगह रास उल्लास होगा. गरबे की धूम और रौशनी से सराबोर पांडालों में भक्त मस्ती में झूमेंगे. तो आइये हम बताते हैं आपको की नवरात्री में पहला दिन किस देवी का होता है.
नवदुर्गाओं में प्रथम - शैलपुत्री

वन्दे वञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |
वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||||

नवरात्री का पहला दिन माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना का दिन माना जाता है. जैसे की इनके नाम से ही विदित है कि ये शैल (पर्वत या चट्टान) की पुत्री हैंतो हम आपको बताते हैं की ये पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं. शैलपुत्री को पर्वतराज ने घोर तप करके पाया था. दुर्गा जी के पहले स्वरुप को शैलपुत्री के नाम से जानते हैं. इन देवी की पूजा अर्चना योगी और तपस्वियों द्वारा अपने मन को 'मूलाधारचक्र में स्थित करने के लिए की जाती है. यही से उनकी योग साधना की शुरुआत होती है.
माता शैलपुत्री की सवारी गाय है और इनके एक हाथ में त्रिशूल और दुसरे हाथ में कमल रहता है. शैलपुत्रीपर्वतराज के यहाँ जन्म लेने से पूर्व अर्थात अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के यहाँ जन्मी थी तब इनका नाम सती था. तब इनका विवाह शिव जी से हुआ था. अपने कठोर तप से सती ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया और उनसे विवाह किया. लेकिन प्रजापति दक्ष को सती के इस फैसले से इंकार था फिर भी माता सती ने भोलेनाथ से ब्याह किया और दक्ष ने रुष्ट होकर सती को कभी अपने घर ना आने को कहा.
एक बार जब प्रजापति दक्ष एक अनुष्ठान कर रहे थे तो उन्होंने सारे देवी - देवताओं को निमंत्रण भेजालेकिन अपनी पुत्री सती और भगवान् भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया. तब सती को भी वहां जाने का मन हुआ लेकिन भगवान् भोलेनाथ ने उन्हें समझाया और जाने से मना कियालेकिन देवी सती नहीं मानी और वहां जाने की ज़िद करने लगी. तब भगवान् शंकर ने उन्हें अनुमति दे दी. लेकिन जब सती अपने पिता के यहाँ पहुंची तो उनकी माँ के अलावा किसी ने उन्हें आदर सम्मान नहीं दिया. सती की बहनो की बातों में भी व्यंग और उपहास के भाव झलक रहे थे. प्रजापति दक्ष ने भगवान् भोलेनाथ को काफी भला-बुरा कहा और उनका काफी अपमान किया. इस बात से सती को बहुत पछतावा हुआ कि उन्होंने शिव जी की बात ना मान कर बहुत बड़ी गलती की. ग्लानि और क्रोध के बश में माता सती ने योगाग्नि द्वारा अपने आपको भस्म कर लिया.
जब इस बात का पता भगवान भोलेनाथ को चला तब उन्होंने प्रजापति दक्ष के पूरे अनुष्ठान को ध्वस्त कर दिया. माता सती ने दोबारा जन्म पर्वतराज हिमालय के यहाँ लिया और उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. शैलपुत्री का विवाह भी भगवान भोलेनाथ से हुआ.

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