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तैमूर लंग के कत्लेआम की कहानी, चारों तरफ कटे सिर का लग गया था अंबार - उदय सिंह यादव, प्रधान संपादक

  • उदय सिंह यादव, प्रधान संपादक - INA NEWS TV

नई दिल्ली : आज हम आपको तैमूर लंग से जुड़ी उस कहानी से रूबरू कराएंगे, जब दिल्ली में चारों तरफ कटे सिर और शरीर के टुकड़े ही टुकड़े नजर आ रहे थे। बात उस समय की है जब दिल्ली कूच करने के लिए तैमूर लंग ने योजना बनाई। तैमूर लंग के करीब 90 हजार सैनिक समरकंद में इकट्ठा हुए थे। समरकंद से दिल्ली पहुंचने का सबसे कठिन रास्ता था।

यह रास्ता हिंदुकुश पहाड़ियों के ऊपर से होकर जाता था। इस पहाड़ी के आसपास वे लोग रहते थे, जिनके सामने सिंकदर महान भी नहीं टिक सका था। इसके अलावा बीच में अनेक नदियां और पथरीले रास्ते और पहाड़ थे। जो तैमूर के रास्ते को और कठिन बनाते थे। हालांकि इन सबसे अगर तैमूर की सेना निपटने में सफल हो सके तो इनका आगे सामना भीमकाय हाथियों से होना था। ये हाथियां ऐसे थे कि सामने खड़ी दीवार को भी रौंदते चले जाते थे।1338 में फिरोज शाह तुगलक की मौत के बाद दिल्ली में अशांति फैली हुई थी।

तैमूर ने एक लाख हिंदुओं को बनाया बंदी

तैमूर के लिए दिल्ली का रास्ता आसाना नहीं था। तैमूर की सेना ने एक से बढ़कर एक लड़ाईयां लड़ी थीं, हालांकि ऐसी परिस्थितियों से पहले वे वाकिफ नहीं थे। रास्ता इतना खतरनाक था कि कई घोड़े पहाड़ियों से फिसलकर अपनी जान गवां बैठे। धीरे-धीरे आगे बढ़ते तैमूर का सामना सारंग खां से हुआ, जिसने उसका रास्ता रोकने की कोशिश की। हालांकि तैमूर ने उसे हरा दिया। इस दिल्ली पहुंचने से पहले ही तैमूर ने एक लाख से अधिक हिंदुओं को बंदी बना लिया था। जिस समय दिल्ली के करीब तैमूर पहुचा, उस समय आपसी लड़ाई के कारण दिल्ली की ताकत पहले से काफी घट चुकी थी। फिर भी 10 हजार घुड़ सवार, 25 से 40 हजार सैनिक तैमूर की सेना का सामना करने के लिए तैयार थे।

तैमूर की क्रूरता का दूसरा उदाहरण नहीं

तैमूर को दिल्ली पर हमला करने से पहले एक और डर सता रहा था कि अगर वह मल्लू खां के सैनिकों पर हमला किया था तो तैमूर के साथ चल रहे एक लाख हिंदू बंदी उनका हौसला बढ़ाएंगे। तैमूर को अपनी सेना के पीछे चल रहे इन बंदियों के विद्रोह का इतना डर था कि उसने उसी जगह एक बंदी को मारने का आदेश दे दिया। साथ चल रहे मौलानाओं को भी हिंदू बंदियों की हत्या करने को कहा गया। तैमूर इस कत्लेआम के बारे में बाद में सर डेविड प्राइस ने अपनी किताब 'मेमॉएर्स ऑफ़ द प्रिंसिपल इवेंट्स ऑफ़ मोहमडन हिस्ट्री' में लिखा, "मानवता के इतिहास में इस तरह की क्रूरता का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता।"

अपनों को छोड़कर भाग खड़े हुए दिल्ली के सुल्तान

तैमूर ने अपनी आत्मकथा में लिखा, "मैंने एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी थाम ली। मैं दाएं बाएं तलवार और कुल्हाड़ी चलाता हुआ चल रहा था। मैंने दो बार हाथियों की सूढ़ काट डाली और जिसकी भी सूँढ़ काटी, वो हाथी घुटने टेक कर एक करवट लेट गया और उसके हौदे पर बैठे सैनिक ज़मीन पर गिर पड़े। तभी शहर से निकलने वाले बड़ी बड़ी मूंछों वाले हिंदी सिपाहियों ने हमारा रास्ता रोकने की कोशिश की।" उसने आगे अपनी आत्मकथा में लिखा कि मेरे दोनों हाथ इतनी तेज़ी से वार कर रहे थे कि ख़ुद मुझे अपनी ताकत और फुर्ती पर ताज्जुब हो रहा था। तैमूर ने जब अपने हाथ को मशाल की रोशनी में देखा तो सारे कपड़े खून से सने थे। उसकी दोनों कलाईंया घायल थीं, लेकिन तब दिल्ली के अंदर तैमूर की सेना दाखिल हो चुकी थी और एक दिन बाद वह दिल्ली के अंदर विजेता की तरह घुसा। दिल्ली के सुल्तान महमूद और मल्लू खां ने अपने लोगों को यूं छोड़कर युद्ध के मैदान से भाग खड़े हुए।

तैमूर के सैनिकों ने महिलाओं की बेज्जती

एक-एक करके बचे हुए करीब 100 हाथियों को तैमूर के सामने लाया गया। इन हाथियों ने घुटने के बल बैठकर और सूंड़ उठाकर दिल्ली के नए शासक तैमूर लंग को सलामी दी। लड़ाई समाप्त होने के बाद तैमूर के सैनिकों ने घर जाकर यह बताना शुरू किया कि उन्हें कितना हर्जाना देना होगा।

कुछ सैनिक तो अपने साथियों के लिए शहर में अनाज की लूटपाट करने लगे। मोहम्मद क़ासिम फ़ेरिश्ता अपनी किताब 'हिस्ट्री ऑफ़ द राइज़ ऑफ़ मोहमडन पावर इन इंडिया में' तैमूर के सैनिकों के आतंक के बारे में लिखते हैं, "हिंदुओं ने जब देखा कि उनकी महिलाओं की बेइज़्ज़ती की जा रही है और उनके धन को लूटा जा रहा है तो उन्होंने दरवाज़ा बंद कर अपने ही घरों में आग लगा दी। यही नहीं वो अपनी पत्नियों और बच्चों की हत्या कर तैमूर के सैनिकों पर टूट पड़े।

इसके बाद तो दिल्ली में वो नरसंहार देखने में आया कि सड़कों पर लाशों के ढेर लग गए। बीबीसी के रेहान फजल के अनुसार जस्टिन मोरोजी लिखते हैं, तैमूर के 500 सैनिकों ने एक मस्जिद पर हमला करके वहां पर शरण लिए एक एक व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिए। तैमूर के सैनिकों ने काटे हुए सिरों की मीनार खड़ी कर दी और कटे हुए शरीर के टुकड़े को चील और कौवे को खाने के लिए छोड़ दिए। यह कत्लेआम लगातार तीन दिनों तक जारी रहा। तैमूर के सिपहसलकार दिल्ली की जनता पर जुल्म ढाकर उन्हें अपने नियंत्रण में करने की कोशिश में लगे थे।

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