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पितरों के प्रति आस्था, श्रद्धा और अनुष्ठान के पक्ष की शुरुआत - INA NEWS TV

लखनऊ : पितरों के प्रति आस्था, श्रद्धा और अनुष्ठान के पक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से हो रही है। एक पखवारे तक चलने वाले श्राद्ध व अनुष्ठान की समाप्ति 14 अक्तूबर को पितरों को विदाई देकर होगी। ज्योतिषाचार्य पं.विजय प्रकाश तिवारी जी कहते हैं कि श्राद्ध करने से पितर खुश होते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है। हर बार एक सवाल उठता है कि महिलाएं श्राद्ध व पिंडदान कर सकती हैं या नहीं। 

ऐसे में बता दें कि शास्त्र और आचार्य स्पष्ट रूप से कहते हैं कि महिलाएं भी श्राद्धकर्म, तर्पण कर सकती हैं। वैदिक ज्योतिष पं.विजय प्रकाश तिवारी जी के अनुसार, गरुण पुराण के मुताबिक यदि पति, पिता या कुल में कोई पुरुष सदस्य नहीं होने या उसके होने पर भी यदि वह श्राद्ध कर्म कर पाने की स्थिति में नहीं हो तो घर की महिला श्राद्ध कर सकती हैं। यदि घर में कोई वृद्ध महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होगा।


वाल्मिकी रामायण में सीता द्वारा पिंडदान का संदर्भ
पं.विजय प्रकाश तिवारी जी कहते हैं कि वाल्मिकी रामायण में सीता माता द्वारा पिंडदान देकर राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है। वनवास के दौरान भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे थे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए थे। सामग्री इकट्ठा करते-करते दोपहर हो गई थी। पिंडदान का निश्चित समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। तभी राजा दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग की। गया जी के आगे फल्गू नदी पर अकेली माता सीता असमंजस में पड़ गईं। उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया।



गायत्री मंदिर में हर वर्ष महिलाएं भी करती हैं पिंडदान
पं.विजय प्रकाश तिवारी जी कहते हैं कि वराहा, मत्स्य आदि पुराणों व महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में कहा गया कि श्राद्ध का अर्थ अपने देवों, परिवार, वंश, परंपरा, संस्कृति और इष्ट के प्रति श्रद्धा रखना है। श्राद्ध स्त्री या पुरुष कोई भी कर सकता है। श्रद्धा से कराया गया भोजन और पवित्रता से जल का तर्पण ही श्राद्ध का आधार है। गायत्री मंदिर में 29 सितंबर से सामूहिक पिंडदान किया जा रहा है। प्रातः पांच बजे से हर दिन शुरू होगा। हर वर्ष पूरे पक्ष में 100 के करीब महिलाएं पिंडदान करती हैं।

युवा पीढ़ी जाने, क्यों जरूरी है पितृपक्ष में अनुष्ठान
पितृपक्ष में किए गए दान-धर्म के कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति मिलती है। साथ ही पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। जिन पितरों की पुण्यतिथि परिजनों को ज्ञात नहीं हो तो उनका श्राद्ध, दान, एवं तर्पण पितृविसर्जनी अमावस्या के दिन करते हैं।

कब कौन सा श्राद्ध
29 सितंबर-पूर्णिमा का श्राद्ध
30 सितंबर- प्रतिपदा का श्राद्ध
01 अक्तूबर- तृतीया का श्राद्ध
02 अक्तूबर- चतुर्थी का श्राद्ध
03 अक्तूबर- पंचमी का श्राद्ध
04 अक्तूबर- षष्ठी का श्राद्ध
05 अक्तूबर- सप्तमी का श्राद्ध
06 अक्तूबर- अष्टमी का श्राद्ध
07 अक्तूबर- नवमी का श्राद्ध
08 अक्तूबर- दशमी का श्राद्ध
09 अक्तूबर- एकादशी का श्राद्ध
10 अक्तूबर- मघा श्राद्ध (हालांकि इस दिन श्राद्ध तिथि नहीं है, लेकिन मघा केतु का नक्षत्र है और शुभ फलदायक है। )
11 अक्तूबर- द्वादशी का श्राद्ध
12 अक्तूबर- त्रयोदशी का श्राद्ध
13 अक्तूबर- चतुर्दशी का श्राद्ध
14 अक्तूबर- सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध

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