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आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस है, आज हिंदी पत्रकारिता को पूरे 193 साल हो गए।

  • उदय सिंह यादव 

आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस है। आज हिंदी पत्रकारिता को पूरे 193 साल हो गए हैं। 30 मई 1826 को पं0 जुगल किशोर शुक्ल ने प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरम्भ किया था।

उस समय अंग्रेज़ी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए ‘उदंत मार्तड’ का प्रकाशन शुरू किया गया। उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ है ‘समाचार-सूर्य‘। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। इसके संपादक भी श्री जुगुलकिशोर शुक्ल ही थे।  वे मूल रूप से कानपुर संयुक्त प्रदेश के निवासी थे। वह 30 मई का ही दिन था, जब देश का पहला हिन्दी अखबार 'उदंत मार्तण्ड' प्रकाशित हुआ।

इसी दिन को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। हिन्दी के पहले अखबार के प्रकाशन को 193 वर्ष हो गए हैं। इस अवधि में कई समाचार-पत्र शुरू हुए, उनमें से कई बन्द भी हुए, लेकिन उस समय शुरू हुआ हिन्दी पत्रकारिता का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। लेकिन, अब उद्देश्य पत्रकारिता से ज्यादा व्यावसायिक हो गया है।

पिछले 193 साल में काफी चीजें बदलीं हैं। हिन्दी अखबारों के कारोबार में काफी तेज़ी आई है। साक्षरता बढ़ी है। पंचायत स्तर पर राजनैतिक चेतना बढ़ी है। साक्षरता बढ़ी है। इसके साथ-साथ विज्ञापन बढ़े हैं। हिन्दी के पाठक अपने अखबारों को पूरा समर्थन देते हैं। इसके साथ ही तमाम बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। मुझे लगता है कि हिन्दी पत्रकार में अपने कर्म के प्रति जोश कम है। उदंत मार्तंड इसलिए बंद हुआ कि उसे चलाने लायक पैसे पं जुगल किशोर शुक्ल के पास नहीं थे। आज बहुत से लोग पैसा लगा रहे हैं। यह बड़ा कारोबार बन गया है। जो हिन्दी का क ख ग नहीं जानते वे हिन्दी में आ रहे हैं, पर मुझे लगता है कि कुछ खो सा गया है। क्या मैं गलत सोचता हूँ?


पिछले कुछ समय से अखबार इस मर्यादा रेखा की अनदेखी कर रहे हैं। टीवी के पास तो अपने मर्यादा मूल्य हैं ही नहीं। वे उन्हें बना भी नहीं रहे हैं। मीडिया को निष्पक्षता, निर्भीकता, वस्तुनिष्ठता और सत्यनिष्ठा जैसे कुछ मूल्यों से खुद को बाँधना चाहिए। ऐसा करने पर वह सनसनीखेज नहीं होता, दूसरों के व्यक्तिगत जीवन में नहीं झाँकेगा और तथ्यों को तोड़े-मरोड़ेगा नहीं। यह एक लम्बी सूची है। एकबार इस मर्यादा रेखा की अनदेखी होते ही हम दूसरी और गलतियाँ करने लगते हैं। हम उन विषयों को भूल जाते हैं जो हमारे दायरे में हैं।

सूचना चटपटी चाट नहीं है। यह बात पूरे समाज को समझनी चाहिए। इस सूचना के सहारे हमारी पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था खड़ी होती है। अक्सर वह स्वाद में बेमज़ा भी होती है। हमारे सामने चुनौती यह थी कि हम उसे सामान्य पाठक को समझाने लायक रोचक भी बनाते, पर वह हो नहीं सका। उसकी जगह कचरे का बॉम्बार्डमेंट शुरू हो गया। इसके अलावा एक तरह का पाखंड भी सामने आया है। चूंकि बिकने लायक सार्थक और दमदार चीज़ बनाने में मेहनत लगती है, समय लगता है। उसके लिए पर्याप्त अध्ययन की ज़रूरत भी होती है। वह हम करना नहीं चाहते। या कर नहीं पाते। चटनी बनाना आसान है। कम खर्च में स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन बनाना मुश्किल है।

ग्लोबलाइज़ेशन के इस दौर में गणेश शंकर विद्यार्थी, तकवी शकंर पिल्ले, राजेंद्र माथुर,सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय की ज़माने की पत्रकारिता की कल्पना करना मूर्खता होगी। लेकिन इतना तो ज़रूर सोचा जा सकता है कि हम जो कर रहे हैं , वो वाकई पत्रकारिता है क्या।

सब जानते हैं कि भारत में देश की आज़ादी के लिए पत्रकारिता की शुरूआत हुई। पत्रकारिता तब भी हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा कई भाषाओं में होती थी। लेकिन भाषाओं के बीच में दीवार नहीं थी। वो मिशन की पत्रकारिता थी। आज प्रोफोशन की पत्रकारिता हो रही है। पहले हाथों से अख़बार लिखे जाते थे। लेकिन उसमें इतनी ताक़त ज़रूर होती थी कि गोरी चमड़ी भी काली पड़ जाती थी।

आज आधुनिकता का दौर है। तकनीक की लड़ाई लड़ी जा रही है। फोर कलर से लेकर न जाने कितने कलर तक की प्रिटिंग मशीनें आ गई हैं। टीवी पत्रकारिता भी सेल्युलायड, लो बैंड, हाई बैंड और बीटा के रास्ते होते हुए इनपीएस, विज़आरटी, आक्टोपस जैसी तकनीक से हो रही है। लेकिन आज किसी की भी चमड़ी पर कोई फर्क नहीं पड़ता। शायद चमड़ी मोटी हो गई है।

आख़िर क्यों अख़बारों और समाचार चैनलों से ख़बरों की संख्या कम होती जा रही है। इसका जवाब देने में ज़्यादातर कथित पत्रकार घबराते हैं। क्योंकि सत्तर –अस्सी के दशक से कलम घिसते –घिसते कलम के सिपाही संस्थान के सबसे बड़े पद पर बैठ तो गए लेकिन कलम धन्ना सेठ के यहां गिरवी रखनी पड़ी। कम उम्र का छोरा ब्रैंड मैनेजर बनकर आता है और संपादक प्रजाति के प्राणियों को ख़बरों की तमीज़ सिखाता है। ज़रूरी नहीं कि ब्रैंड मैनेजर पत्रकार हो या इससे वास्ता रखता हो। वो मैनेजमैंट पढ़कर आया हुआ नया खिलाड़ी होता है। हो सकता है कि इससे पहले वो किसी बड़ी कंपनी के जूते बेचता हो। तेल, शैंपू बेचता हो। वो ख़बर बेचने के धंधे में है। इसलिए उसके लिए ख़बर और अख़बार तेल , साबुन से ज़्यादा अहमियत नहीं रखते। वो सिखाता है कि किस ख़बर को किस तरह से प्ले अप करना है। सब बेबस होते हैं। क्योंकि सैलरी का सवाल है। ब्रैंड मैनेजर सेठ का नुमाइंदा होता है। उसे ख़बरों से नहीं, कमाई से मतलब होता है। अब कौन पत्रकार ख़्वामखाह भगत सिंह बनने जाए।

कलेवर के साथ अखबारों के तेवर भी बदल गए

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विस्तार, जल्दी ख़बरें पेश करने और दृश्यों की प्रधानता ने अख़बारों को सोचने पर मजबूर कर दिया। न्यूज़ चैनलों के मार्केट में आने से न सिर्फ़ अख़बार के पाठकों की संख्या में कमी आई बल्कि पाठकों ने उन अख़बारों को तरजीह देना शुरू कर दिया जो अपने आप में संपूर्णता परोसते हैं। उन्हें ख़बरों में भी मनोरंजन नज़र आने लगा। ऐसे में अख़बारों के सामने नई चुनौती पेश आ गई, कुछ बड़े ब्रांड ने हाथों-हाथ अपने कंटेंट में परिवर्तन कर लिया और कुछ ने मार्केट में रिसर्च कर ये पता लगाने की कोशिश की कि आख़िर सुधी पाठक इस कंपटिशन के दौर में कैसी ख़बरें पढ़ना पसंद करते हैं। ज्यादातर अख़बारों ने न सिर्फ़ अपना क्लेवर बदला बल्कि अपनी ख़बर को पेश करने का अंदाज़ भी बदल डाला, आख़िर मार्केट में जो टिके रहना था। कुछ अख़बारों ने अपनी भाषा में आम बोलचाल यानी हिंग्लिश को तरजीह दी तो किसी ने अपनी भाषा को हिंदी के साथ-साथ दूसरी भाषाओं के शब्दों को अपनाने से भी गुरेज़ नहीं किया।

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अब तक मैंने आपको दिल की सारी बात कही सिर्फ इस बात के कि पत्रकारिता एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है. इस समय भारत में देशभक्ति से पूर्ण पत्रकारिता की जरूरत है जो आजादी से पहले हुआ करती थी. आज सस्ती टीआरपी की होड़ लगी है.

एक बार भारत ने अग्नि मिसाइल का सफल प्रक्षेपण किया, यह महत्वपूर्ण समाचार भारतीय समाचार पत्रों और टीवी में बड़ी खबर बनकर नहीं आई लेकिन दूसरे देशों के समाचार पत्रों में इस खबर को कहीं अधिक प्राथमिकता दी, आप सभी मित्रोँ व मीडिया के मित्रोँ को हिन्दी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक सुभकामनाए 


193वे हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर देश के सभी सम्मानित वरिष्ठ, कनिष्ठ, युवा पत्रकार बंधुओं को हार्दिक शुभकामनाएँ :

आपका अपना 
उदय सिंह यादव, CMD / एडिटर इन चीफ
INA NEWS GROUP

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