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यहां गली- गली में विराजे हैं भगवान आशुतोष

प्रेम कुमार चौहान, ब्यूरो - आगरा 
आगरा - विश्व प्रसिद्ध ताजनगरी, सुलहकुल की नगरी। एतिहासिक इमारतों की गौरवगाथा समेटे ये शहर मुगलों की राजधानी के नाम से भी इतिहास के पन्नों में दर्ज। मुगलिया दौर की शान के इस शहर में हिंदुओं के आराध्य भगवान आशुतोष के मंदिरों की अटूट श्रंखला भी है। शहर में स्थित शिवालयों की संख्या यदि गिनी जाए तो ताज नगरी को शिव की नगरी कहने में कोई दोष न रहेगा। श्रावण मास में विशेषकर यहां लगने वाली शिवालयों की परिक्रमा महज चारों दिशाओं में स्थित शिव मंदिरों तक ही सीमित नहीं है। आगरा की गली- गली में आदि, मध्य काल से विराजित हैं भगवान शिव। 
मन:कामेश्वर मंदिर
पुराना आगरा के रावतपाड़ा बाजार में प्राचीन मन:कामेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। मंदिर से शहर ही नहीं देश के लाखों लोगों की श्रद्धा जुड़ी हुई है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव परिवार के साथ स्थापित हैं। यहां सावन ही नहीं हर सोमवार को भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यह ऐसा मंदिर है, जहां मंदिर के द्वार के बाहर से ही भगवान शिव के दर्शन किए जा सकते हैं। 
मान्यता है कि यहां शिवलिंग की स्थापना भगवान शिव ने स्वयं द्वापर युग में की थी। कथा के अनुसार मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद उनके बाल रूप के दर्शन को भगवान शिव कैलाश से चले थे। उन्होंने एक रात यहां बिताई और साधना की। उन्होंने प्रण लिया कि अगर वह बाल रूप श्रीकृष्ण को अपनी गोद में खिला पाए तो यहां शिवलिंग स्थापित करेंगे। वह गोकुल पहुंचे तो उनके जटा-जूटधारी रूप और भस्म-भभूत को देखकर माता यशोदा ने यह कहकर मना कर दिया कि कान्हा उन्हें देखकर डर जाएगा। इस पर भगवान शिव वहीं एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए। भगवान शिव को आया जानकर भगवान श्रीकृष्ण ने लीला शुरू कर दी और रोते हुए शिव की तरफ इशारा किया। यशोदा ने जब शिव की गोद में कान्हा को दिया तभी वह शांत हुए। अपने प्रण के अनुसार भगवान शिव ने गोकुल से लौटते वक्त शिवलिंग को स्थापित किया। भगवान शिव जिस जगह रुके थे, वहां श्मशान था। इसीलिए उन्होंने वहां शिवलिंग स्थापित किया था। बल्केश्वर महादेव मंदिर:
बल्केश्वर में यमुना के किनारे पर प्राचीन बल्केश्वर महादेव मंदिर स्थित है। मान्यता है कि यह मंदिर राजा भोज के समय का है। यमुना तट पर बने इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है।
बल्केश्वर महादेव का प्राचीन नाम बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर है। पूर्व में यहां बेलपत्र का जंगल हुआ करता था। इमली के पेड़ भी यहां लगे हुए थे। यहां शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था। राजा भोज ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। आज यह मंदिर शहरवासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर के महंत सुनील कांत नागर व कपिल नागर ने बताया कि मंदिर के वर्तमान भवन का निर्माण करीब 400 वर्ष पूर्व हुआ था।
सावन के दूसरे सोमवार को यहां मेला लगता है। मेले की पूर्व संध्या पर रविवार को शहर के चारों शिवालयों की परिक्रमा श्रद्धालुओं द्वारा लगाई जाती है।
नीलकंठ महादेव मंदिर:
सिटी स्टेशन रोड स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर शहर के प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की विशेषता है कि यहां नंदी के ऊपर शिवलिंग स्थापित है। यह कसौटी पत्थर का बना हुआ है। नंदी की पीठ पर विराजमान शिवलिंग देश में भगवान शिव का विरला रूप है। कालंजर के दुर्ग में भगवान शिव का यही रूप स्थापित है। मंदिर की स्थापना नौवीं-दसवीं शताब्दी में हुई थी। सतीशचंद्र चतुर्वेदी ने अपनी किताब 'आगरानामा' में इस मंदिर का जिक्र किया है। औरंगजेब ने आगरा आए शिवाजी को नजरबंद कर लिया था। इस दौरान वह बीमार हो गए। यकृत, प्लीहा और ज्वर की शिकायत कर जोर-जोर से चिल्लाने लगे। स्वस्थ होने पर अमीरों, हकीमों, वैद्य, ब्राह्माणों और निर्धनों को बड़े-बड़े टोकरों में मिठाई व फल भिजवाने लगे। मथुरा के फकीरों व ब्राह्माणों को भी टोकरे भेजे गए। इन्हीं टोकरों में बैठकर शिवाजी और शंभाजी औरंगजेब की कैद से निकल गए। उन्हें नीलकंठ महादेव मंदिर लाया गया, यहां कुछ देर रुकने के बाद वह मथुरा के लिए रवाना हुए थे।
प्राचीन मंदिर बाबा पंचमुखी महादेव:
आगरा शहर के शिवालयों की पावन श्रृंखला में बाबा पंचमुखी महादेव का अपना खासा पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। बेलनगंज चौराहे पर स्थित इस अति प्राचीन मंदिर की स्थापना के बारे में जनश्रुति है कि सदियों पूर्व जब यमुना नदी का पाट बहुत छोटा था और यमुना नदी इस मंदिर को स्पर्श करती थी।
मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार 30 अप्रैल 1882 रविवार को मंदिर के वर्तमान भवन का निर्माण हुआ था। मंदिर के वर्तमान महंत पं. गिरीश अश्क के अनुसार उनकी सात पीढि़यां इस मंदिर सेवा में रही हैं। पं. अश्क स्वयं एक प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं और बैंक में जॉब करते हैं। ब्रहमलाल मंदिर बटेश्वर:
आगरा शहर से करीब 80 किमी और बाह कस्बे से 13 किमी दूर है बटेश्वर। यमुना नदी की धार को मोड़ कर बनाए गए अ‌र्द्ध चंद्राकार बांध पर स्थापित है ब्रहमलाल मंदिर। अंदर भगवान शिव विराजमान हैं तो बाहर प्रवेश द्वार पर नंदी महाराज की प्रतिमा।
1646 में तत्कालीन भदावर नरेश बदन सिंह ने अ‌र्द्धचंद्राकार बांध बनाया था। उसी काल खंड में ब्रहमलाल मंदिर की स्थापना की गई। मान्यता है कि इसी घाट पर कन्या ने डुबकी लगाई और वह पुरुष के रूप में प्रकट हुई। इस घाट को बदनबाह के नाम से जाना जाता है। कुछ भक्त तो इसे साक्षी मानकर शादी तक करते हैं।
मंदिर में सावन के प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालु सोरों से कांवड़ में गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। क्षेत्रीय लोग बताते हैं कि अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने भी यहां कांवड़ चढ़ाई थी। हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच यमुना में स्नान कर पूजा अर्चना करते है।
रावली महादेव मंदिर:
रावली महादेव मंदिर शहर का प्रमुख शिवालय है। कलक्ट्रेट के नजदीक स्थित शिवालय में हर सोमवार को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
रावली महादेव मंदिर का निर्माण आमेर के राजा मानसिंह ने कराया था। मुगल शहंशाह अकबर ने राजा मानसिंह को युद्ध के लिए अफगानिस्तान भेजा था। उन्हें वहां अटक की पहाड़ी पर शिवलिंग मिला, जिसे वो आगरा ले आए। जहां रावली महादेव मंदिर है, वहां रावल राजपूत रहा करते थे। इसलिए इस मंदिर का नाम रावली महादेव पड़ गया। मंदिर से जुड़ा एक अन्य किस्सा ब्रिटिश काल का है। वर्ष 1892 में अंग्रेजों ने आगरा फोर्ट स्टेशन से ईदगाह तक रेल लाइन बिछाई थी। बीच में आ रहे रावली महादेव मंदिर को वह हटाना चाहते थे। मगर रेल लाइन बिछाने के काम में बाधा आने लगी। भारतीय श्रमिकों ने अंग्रेजों को बताया कि यदि वह मंदिर को हटाने का विचार छोड़ दें तो बाधाएं नहीं आएंगी। ऐसा ही हुआ, मंदिर न हटाने के निर्णय के बाद ही रेलवे लाइन का काम पूरा हो सका। रेलवे लाइन में ऐसा टर्न किसी अन्य जगह देखने को नहीं मिलता है। इतिहासविद राजकिशोर राजे ने अपनी किताब 'तवारीख-ए-आगरा' में इसका वर्णन किया है।

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