बड़ी एसयूवी, उस पे लगा
राजनैतिक दल का झंडा ये दो तत्व जब मिलते हैं तो गाड़ी वायुयान बन जाती है और रोड
रनवे। गाड़ी का ड्राइवर खुद को हवाईजहाज का कैप्टन समझता है और अंदर विराजमान
गुर्गे द्विआयामी सड़क पे त्रिआयामी चार्टर प्लेन का सुख ले रहे होते हैं।
ऐसे में यदि कोई छोटी कार या बाइक
रास्ते में आ जाए और नेता जी की गाड़ी की स्पीड को चुनौती दे तो सत्ता की खुमारी
हिंसक बुखार में तब्दील हो जाती है।
कुछ दिन पहले बिहार के एक विधायक के
पुत्र ने इसी बुखार के प्रभाव में एक मासूम की जान ले ली। कल राजस्थान के एक मंत्री पुत्र ने एक
छोटी गाड़ी के गुस्ताख़ ड्राइवर छात्र को सरेआम इसीलिए पीट दिया क्योंकि उस ड्राइवर
को इस अघोषित प्रोटोकॉल का इल्म नहीं था, और रास्ता एकपथगामी था।
भारत
जैसे देश ने सदियों गुलामी झेली है। सत्ता वर्ग आज भी स्वयं को बादशाह समझता है और
किसी ऐरे गैरे छोटी गाड़ी के ड्राइवर द्वारा की गयी हिमाकत को दंड देने का
प्राधिकार रखता है। इसलिए जब वीआईपी नंबर वाली झंडेदार बड़ी गाड़ी पीछे आये तो गुलाम
वर्ग को इज्जत के साथ अपनी गाड़ी किनारे लगा देनी चाहिए।
अन्यथा
शाही वर्ग दंड देने की अवस्था में ये भी नहीं देखेगा कि गुलाम वर्ग गाड़ी में अपनी
माँ, बीवी या बहन के साथ है। अपनी इज्जत अपने पैर में है। ब्रेक
मारिये और रुक जाइये। वोट देने से पहले रैली में गाड़ियों की संख्या देख के
प्रभावित हो जाने वाले संभ्रान्त जनों से एक अनुरोध- छोटी गाड़ी आपकी भी हो सकती है।
अब बात अपने जैसे गुलाम वर्ग की कर लेता हूँ ,
वास्तविक रूप से देखें तो समस्या हमारे डीएनए में है। कभी अपनी माँ,बहन,पत्नी,बिटिया,भाभी
के सामने किसी तर्कसंगत बात पर किसी से हाथापाई करके देखो, वे सब तुरन्त
अपनी पूरी चेतना से तुम्हें रोकने का यत्न करेंगी, काहे? ये
संस्कार हैं।, आगे चलकर यही भीरुता बढ़ते बढ़ते अनुयायी और
फिर अनुगामी बना देती है।
इसका परिणाम वीआईपी और वीवीआईपी ही होता है।
हमारे ही द्वारा चुने व्यक्ति को हमने ही हवा
भर भर कर गुब्बारा बनाया है।, सब कुछ सामाजिक चेतना का खेल है।
कभी कभी लगता है,ये भीरुता बड़ी
चतुराई से हमारे अन्तस में ग्राफ्ट की गई है और अब इससे पार पाना एक महाक्रांति
जैसा ही कुछ होगा।
- आपके प्यार के साथ - आपका अपना : उदय सिंह यादव
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