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समाज और देश के लिए समर्पित और कर्तव्यपथ पर डटे रहने की प्रेरणा थीं माँ हीरा बा - डॉ. ब्रजेश यादव

आज हम सभी के प्रिय और करोड़ों देशवासियों के आदर्श एवं प्रेरणास्रोत प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की शक्ति-साहस-संबल-आश्वस्ति तथा असीम प्रेरणा परम पूजनीया माँ हीरा बा अपने संघर्षशील, सत्साहसिक, सात्विक, धर्मपरायण जीवन के शताब्दी वर्ष में शिव-सायुज्य को प्राप्त हो गयीं। 

प्रधानमंत्रीजी की वह माँ थीं और माँ का तो कोई विकल्प ही नहीं !

जब तक वह थीं देश के सबसे लोकप्रिय, ताकतवर , यशस्वी व्यक्ति यानी श्रद्धेय मोदीजी के हर निजी दुख, संकट, सार्वजनिक-राजनीतिक चुनौती, को अपने स्नेह और आशीर्वाद से हर लेने वाली माँ थीं।  अपने जीवन के समस्त पुण्यों के बल पर अपने त्याग, तयस्या, स्नेह-आशीर्वाद की शक्ति से अपने पुत्र के जय-विजय की प्रेरणा और शक्ति थीं।


देश के सबसे प्रिय लोकप्रिय, शक्तिशाली नेता और सर्वाधिक प्रभावशाली विश्वनेता के लिए भी कोई एक छाया थी माँ के रूप में। माँ का बल था। माँ का सहारा था। आज वह माँ भौतिक रूप से नहीं रही। 

सब कुछ साधारण और सहज तरीके से संपादित हो गया। बिना किसी हो- हल्ले, सियासी प्रदर्शन के जैसी वह साधारण और सरल थीं, उसी तरह उनका अंतिम प्रस्थान हो गया। पंच तत्व में विलीन हो गयीं।
 कंधे पर माँ की अर्थी उठाए बेटे ने भी साधारण बेटे की तरह अपने कर्तव्य को पूरा किया। देश ही दुनिया के सबसे यशस्वी, प्रभावशाली व्यक्ति जो नंगे पाँव अपनी जननी को बंधु-बांधवों समेत कंधे पर लेकर चल रहा था , वह 
केवल बेटा था उस समय। 

एक तरफ ये भावुक कर देने वाला क्षण था, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री जी ने देशहित-जनहित के प्रति सच्ची निष्ठा और 'राजधर्म' का परिचय देते हुए "राष्ट्र सर्वोपरि" के पथ पर अग्रसर होकर अपने तय कार्यक्रमों को तय तरीके से पूर्ण किया। अंत्येष्टि और अंतिम विदाई देने के बाद पश्चिम बंगाल के कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए  हावड़ा-न्यू जलपाईगुड़ी (NJP) के बीच देश की सातवीं वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को हरी झंडी दिखाई। 

अपने दायित्व निर्वहन में उन्होंने निजी दुख और शोक को कर्तव्यपथ पर हावी न होने दिया! उस माँ ने ही तो सदैव यह प्रेरणा दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी अपनी माँ के 100 वें जन्मदिन पर ब्लॉग में लिखते हैं कि 'मेरी माँ जितनी सामान्य हैं, उतनी ही असाधारण भी। ठीक वैसे ही, जैसे हर माँ होती है। आज जब मैं अपनी माँ के बारे में लिख रहा हूँ तो पढ़ते हुए आपको भी ये लग सकता है कि अरे, मेरी माँ भी तो ऐसी ही हैं, मेरी माँ भी तो ऐसा ही किया करती हैं। ये पढ़ते हुए आपके मन में अपनी माँ की छवि उभरेगी।'

 ऐसा कहते हुए वे माँ हीराबेन के जीवन-संघर्षों को अन्य माँओं और समस्त स्त्री शक्ति के साथ जोड़ उन्हें गरिमा और सम्मान प्रदान करते हैं। नरेंद्र मोदी जी के संदर्भ में बात करें तो माँ हीराबेन का अपने बेटे पर असीम स्नेह भी था और विश्वास भी इतना कि  उनका यह बेटा एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा! और उनके इस विश्वास की जीत की साक्षी पूरी दुनिया रही। बेटे का पहला संबोधन माँ ने अश्रुपूरित आँखों से टीवी पर देखा। बेटा प्रधानमंत्री बन गया लेकिन माँ तो माँ ठहरीं। बेटे को नसीहत देती रहीं कि अपने शरीर का ध्यान रखें क्योंकि स्वस्थ शरीर ही सार्थक कर्मों की ओर अग्रसर रह सकता है। बेटे को गीता सौंपने का अभिप्राय भी यही रहा होगा कि कर्मयोगी भगवान श्रीकृष्णजी के दिखाए मार्ग का अनुसरण करते रहें। विभिन्न छोटे-बड़े अवसरों पर जब भी प्रधानमंत्री जी अपनी माँ से मिले कभी माँ के साथ खिचड़ी खाई तो कभी मिश्री से मुँह मीठा किया , कभी माँ ने उन्हें सवा रुपये का आशीर्वाद स्वरूप दिये तो कभी ग्यारह रुपये। कभी 501 रुपये। अर्थात हर अवसर विशेष को भी माँ ने साधारणता में संतुष्टि की ही सीख दी। 

गरीबी और अभाव भरी जिंदगी को संघर्ष , श्रम, जिजीविषा, सत्साहस के बूते सकारात्मकता से शोक को शक्ति में बदलने वाली हीरा बा को 

नरसी मेहता जी का प्रसिद्ध भजन “जलकमल छांडी जाने बाला, स्वामी अमारो जागशे” बहुत प्रिय था। 
हर दुख और संघर्ष को उन्होंने ईश्वरीय आदेश के रूप में देखा। आजीवन भगवान की भक्ति में लीन रहीं। 
नोटबन्दी में लाइन में लगीं। प्रधानमंत्री की माँ लाइन में लगीं पर कुछ लोगों ने सियासी और असंवेदनशील टिप्पणी भी की। पर, माँ ने अपने बेटे के हर फैसले को अपने आशीर्वाद से छाया दी। समर्थन दिया।

हर चुनाव में नागरिक कर्तव्य का पालन करते हुए मताधिकार का उपयोग करती थीं।
अपने बेटे को अपने आशीर्वाद से आच्छादित किये रहीं।  वह प्रधानमंत्रीजी से कहती थीं "देखो भाई, पब्लिक का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। ईश्वर का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, तुम्हें कभी कुछ नहीं होगा।"

हमने जब से अपने प्रधानमंत्रीजी को जाना, तब से ही उनकी माँ हीरा बा जी को भी जाना। हर संकट, चुनौती, दुख, विजय, और संघर्ष की घड़ियों में प्रधानमंत्रीजी माँ हीराबेन से आशीर्वाद प्राप्त करते दिखे। हम जानते हैं कि उनका यह आशीर्वाद तब भी बना रहेगा जबकि अब वो भौतिक रूप से नहीं हैं।

एक माँ ने जिस तरह से अपने अनथक संघर्षों द्वारा अपने बच्चों और परिवार को शक्ति दी वह माँ आजीवन तपस्विनी भूमिका में रही। 

श्रम-संस्कृति, संघर्ष, मूल्य की प्रेरणा देने वालीं माँ थीं वह ।

सादर नमन। विदा प्रणाम। विनम्र श्रद्धांजलि।

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