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नवरात्री का सातवां दिन - माँ कालरात्रि : INA NEWS TV

 माँ कालरात्रि

1-:  'एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता. लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी
वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी'

2-:  ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:.

आज नवरात्री का सातवां दिन है सातवें दिन दुर्गा के सातवें स्वरुप माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि असुरों के सबसे बड़े सम्राट रक्तबीज के संघार के लिए कालरात्रि ने अवतार लिया था. माँ कालरात्रि का वर्ण काला होने के कारण इन्हे कालरात्रि कहा गया है. कहा गया है कि माँ कालरात्रि अतिशीघ्र अपने भक्तों से प्रसन्न हो जाती हैं उन्हें शुभ फल प्रदान करती हैं इसलिए इन्हे 'शुभंकारी' भी कहा गया है.

इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी - काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालरात्रि के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं। माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है, जो उनके आगमन से पलायन करते हैं।

दुर्गा के इस स्वरुप की भक्ति-आराधना करने से साधक को समस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं. जो तांत्रिक पराशक्तियों पर विजय पाना चाहते हैं वह माँ कालरात्रि की पूजा उपासना करते हैं. गृह बाधा शांत करने दुष्टों का विनाश करने माँ कालरात्रि की आराधना लाभदायक होती है.

माँ कालरात्रि का वर्ण रात्रि की सामान काला है उनके बाल बिखरे हुए हैं, वे असुरों के काल के रूप में जानी जाती हैं इसी वजह से उन्हें कालरात्रि कहा गया है. माँ कालरात्रि की चार भुजाएं हैं जिनमे उन्होंने अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए हैं. उनके एक हाथ में कटार तो दुसरे हाथ में वज्रास्त्र है, इसके अलावा एक हाथ वरमुद्रा में तो दूसरा अभयमुद्रा में है. माँ कालरात्रि के त्रिनेत्र हैं. इनका वाहन गर्दभ(गधा) है. कहते हैं माँ कालरात्रि के मुख से ज्वाला निकलती है.

कहा जाता है की जब शुम्भ-निशुंभ रक्तबीज जैसे दानवों का अत्याचार अपने चरम पर पहुँच चुका था सारे जगत में त्राहि-त्राहि मच गयी थी तब भोलेनाथ के आग्रह पर माता पार्वती ने शुम्भ-निशुंभ का अंत किया लेकिन रक्तबीज को मिले वरदान की वजह से उसके रक्त से अनेक रक्तबीज उत्पन्न हो गए. 

इसे देखते हुए माता पार्वती ने अपने तेज़ से माँ कालरात्रि को अवतरित किया. माँ कालरात्रि ने रक्तबीज का संहार किया उसके रक्त को अपने मुख में भर लिया इस तरह उसका वध किया. माँ कालरात्रि की पूजा के दौरान उन्हें गुड़ का भोग लगाना चाहिए उसे दान भी करना चाहिए.

कौन हैं मां कालरात्रि
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मां कालरात्रि देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों में से एक हैं, मां कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण का है, काले रंग के कारण उनको कालरात्रि कहा गया है। चार भुजाओं वाली मां कालरात्रि दोनों बाएं हाथों में क्रमश: कटार और लोहे का कांटा धारण करती हैं। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का संहार करने के लिए अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था।

मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा विधि
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नवरात्रि के सातवें दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर मां कालरात्रि का स्मरण करें, फिर माता को अक्षत्, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ का नैवेद्य श्रद्धापूर्वक चढ़ाएं। मां कालरात्रि का प्रिय पुष्प रातरानी है, यह फूल उनको जरूर अर्पित करें। इसके बाद मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें तथा अंत में मां कालरात्रि की आरती करें।

मां कालरात्रि की कथा 
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शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज के अत्याचारों से देवतागण को बचाने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती को इन दैत्यों का अंत करने का आदेश दिया। भगवान शिव की बात मानकर माता पार्वती देवी दुर्गा के स्वरूप में आईं और शुंभ-निशुंभ का वध कर दीं। जब रक्तबीज को मारने की बारी आई तब मां दुर्गा के प्रहार से रक्तबीज की रक्त की बूंदें जमीन पर गिर गईं जिससे लाखों रक्तबीज का उद्गम हुआ था। ‌यह देखकर मां दुर्गा ने अपने सातवें स्वरूप मां‌ कालरात्रि का रूप धारण किया और रक्तबीज का संहार करने के बाद उसके रक्त को अपने मुंह में ले लिया। 

मां कालरात्रि का भोग
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मां कालरात्रि को रातरानी का फूल बेहद प्रिय है। अगर आप मां कालरात्रि को प्रसन्न करना चाहते हैं तो रातरानी का फूल उन्हें अवश्य अर्पित करें। मां कालरात्रि को गुड़ बेहद प्रिय है, इसलिए महासप्तमी पर मां कालरात्रि की पूजा करके उन्हें गुड़ या उससे बने मिठाई का भोग जरूर लगाइए।

मां कालरात्रि के मंत्र
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  • ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:
 2-:  'एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता. लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी, 
         वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी'

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