- भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर आज जगह-जगह हो रही है देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा
- उदय सिंह यादव, लखनऊ
DESK : सृष्टि की महान रचना व उसे सुन्दर बनाने में भगवान श्री विश्वकर्मा जी का विशेष योगदान है, भारत में कोई ऐसा स्थान यां व्यक्ति नहीं हैं। जो भगवान श्री विश्वकर्मा जी के नाम से परिचित न हो
आदिकाल से मान्यता चली आ रही है कि इस सृष्टि की रचना भगवान श्री विश्वकर्मा जी ने की है, शास्त्रों में गौर करें तो विश्वकर्मा का मतलब होता है विश्व की रचना करने वाला, जिसमें कर्म का सम्बन्ध कर्ता से है, और बिना कर्ता के कर्म की अपेक्षा संभव नही है, इसीलिए सृष्टि की रचना करने वाले इन देव शिल्पी देव को विश्वकर्मा कहा गया हैभगवान विश्वकर्मा कौन है, इनका जन्म कैसे हुआ, इन्होंने सृष्टि की रचना कैसे की
विश्वकर्मा जी के जन्म को लेकर वेद और पुराणों में बड़ा ही महत्वपूर्ण वर्णन है, जिसमें भगवान विश्वकर्मा जी के जन्म के बारे में विस्तृत से जानकारी दी गई है
भगवान विश्वकर्मा जी को भुवन पुत्र कहा जाता है। कई विद्वान भुवन का अर्थ सीधे पृथ्वी से इनकी उत्पति मानते है।
शास्त्रों के अनुसार, अथर्ववेद की रचना करने बाले महर्षि अंगिरा की पुत्री भुवना जो ब्रहम विद्या में महा निपुण थी। इसका विवाह आठवें वसु महाऋषि प्रभास से हुई थी। जिन्होंने अपने पुत्र का नाम प्रजापति विश्वकर्मा रखा, जिन्हें बाद में संपूर्ण सृष्टि ने भगवान विश्वकर्मा के नाम से जाना
भगवान विश्वकर्मा जी के जन्म के संदर्भ में एक दोहा भी प्रचलित है जिससे वेदों में भगवान विश्वकर्मा जी के जन्म की पुष्टि होती है !
बृहस्पते भगनी भुवना ब्रह्मवादिनी।,
प्रभासस्य तस्य भार्या बसूूनामष्टस्य च।
विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति।।
वेदों में भी विश्वकर्मा जी का बड़ा ही अच्छा वर्णन है ऋग्वेद में भगवान विश्वकर्मा के नाम से 11 मंत्र दिए गए हैं, जिनमें श्री विश्वकर्मा भगवान को भौवन का देवता कहा गया है।
यजुर्वेद में 17वें अध्याय में 16 से 31 मंत्रो में भगवान विश्वकर्मा को सूर्य और इंद्र का विशेषण रूप दिया गया है। कुछ विद्वान भगवान विश्वकर्मा जी को भगवान विष्णु जी की नाभि से उत्पति मानकर ही विष्णु से विश्वकर्मा का जन्म मानते है।
वहीं कुछ विद्वान ब्रह्म को ही विश्वकर्मा तथा ब्रह्म जी के पाँच मुखों को विश्वकर्मा के पाँच पुत्र मानते है। जिन्होनें अपनी-2 कला और कौशल से सृष्टि की सुन्दर रचना की है।
इनके पाँच पुत्र
1 मनु - मनु ने लोहे की खोज की थी। आवश्यकता के अनुसार इन्होनें लोहे के औजार, अस्त्र - शस्त्र तथा अनेको प्रकार के उपयोगी सामान बनाये हैं। आज इनके वंशज, लुहार या पांचाल कहलाते है।
2 मय - ये विश्वकर्मा जी के दुसरे पुत्र है। इन्होनें लकडी का काम सम्भाला बाद में इनके वंशज बढई, धीमार कहलाते है।
3 त्वष्टा - ये विश्वकर्मा जी के तीसरे पुत्र हैं। इन्होनें सिल्वर, तांबा, कांसा का कार्य संभाला, आज इनके वंशजों को ठठेरे के नाम से जाना जाता है
4 दैवज्ञ - ये विश्वकर्मा की चोथवी संतान हैं। इन्होनें सोने, चांदी हीरा और जवाहरात के आभूषण का कार्य सम्भाला। इनके वंशज अब सुनार नाम से जाने जाते हैं
5 शिल्पी - ये विश्वकर्मा के पांचवे और सबसे छोटे पुत्र हैं, इन्होने इंटो से मकान का निर्माण करना, पत्थरो से मूर्ती बनाना, विभिन्न धातुओ पर मूर्ति आदि बनाना, आदि कार्य संभाला आज इनके वंशज शिल्पकार, राजमिस्त्री, नाम से जाने जाते हैं
भगवान विश्वकर्मा जी के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने ही सोने की लंका का निर्माण एवं श्री कृष्ण की द्वारिका का निर्माण, बिजली, लोहा आदि का निर्माण इनके द्वारा ही किया गया है
INA NEWS DESK
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