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चक्रव्यूह में फंसे सिद्धार्थ, भेदने से पहले ही शस्त्र छोड़े

शिवपुरी -  विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे जैसे करीब आ रही है वैसे वैसे प्रत्याशियों का घमासान बढ़ता जा रहा है।लेकिन शिवपुरी सीट पर कांग्रेस अपना बल नही दिखा पा रही मानो रण भूमि में जाने से पहले ही हथियार डाल दिये हो और होना भी चाहिए।

जिस "वक्त है बदलाव के" नारे के साथ कांग्रेस चुनाव लड़ रही उसका बदलाव शिवपुरी वासी नगर पालिका से भुगत चुके है।सफेदी की एक ओर चमकार शिवपुरी कैसे झेल पाएगी।

पार्टी ने ऐसे प्रत्याशी को अपना चेहरा बनाया था जिसका चेहरा शिवपुरी वासियों के लिये ही अंजान हो।लोग मन बना चुके है उन्हें "दूरदर्शी" प्रत्याशी नहीं प्रत्यक्ष दर्शी प्रत्याशी चाहिए।चूंकि इस सीट पर सिंधिया परिवार का अस्तित्व रहा है इसलिये अंजान चेहरे को यहाँ पर कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया लेकिन जनता के मुताबिक सिद्धार्थ लढा का चुनाव प्रचार शिवपुरी के गलियारों में हवा हवाई हो गया।

कांग्रेस के दिग्गज किसी अन्य चेहरे को यहाँ से टिकट दिलाने के पक्षधर थे इसलिये नए चेहरे के साथ वरिष्ठ कोंग्रेसी असहज महसूस कर रहे।

समाज सेवा कोसों दूर होने के कारण भी जनता के बीच चुनाव के लिये जाना लोगों को समझ आ रहा कि कभी भी न दिखने वाले शिवपुरी के स्थानीय निवासी होते हुए भी आज हमारे दर पर हमारे बीच क्यों आ रहे।जो भी हो नाम बड़े और दर्शन छोटे।सूत्रों की मानें तो ग्रामीण क्षेत्रों में अपना नाम पहुंचा पाना भी इस प्रत्याशी के लिये किसी बड़ी उपलब्धि से कम नही होगी।

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